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कविता

मृत्यु मेरी एक दिन

राजकुमार कुंभज


मैं छीलता हूँ आग
मैं छीलता हूँ पानी के पृष्ठ
मैं छीलता हूँ दीवारें दुख की
करुणामयी-समय है यह और थोड़ा विचित्र भी
मैं तोलता हूँ कविता
लोहे की जगह अनाज जैसे
मैं तोलता हूँ अनाज
मौन की जगह आवाज जैसे
मैं तौलता हूँ आवाज
एकांत की जगह पुकार जैसे
मैं छीलता हूँ पुकार
मैं छीलता हूँ मौसम के पृष्ठ
मैं छीलता हूँ पर्वत प्रेम के
मुझे खुशी होगी गर होगी कविता में ही
मृत्यु मेरी एक दिन।

 


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